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Olympic Gold Winner Karoly Takacs Motivational Story in Hindi

karoly takacs story in Hindi
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दुनिया Karoly Takacs को सिर्फ इसलिए, नहीं जानती की उन्होंने दो बार लगातार olympic गोल्ड मैडल जीता है, बलकी इसिलए हाथ खोने के बावज़ूद भी ये शानदार मक़ाम अपने मेहनत और जूनून से हासिल किआ है |”

उनकी कहानी हमें ये प्रेरणा देती है  : कैसे पूरी लगन और मेहनत से अपने लक्ष्य को हासिल किआ जा सकता है | ना-मुमकिन कुछ भी नहीं होता |

हंगरी देश में Karoly Takacs नाम का एक सेना जवान था| वो pistol shooting में महारथ हासिल कर चूका था | 1939 तक वो लग भग national और international shooting game में जित हासिल कर चुका था | हंगरी देश बासियों को पूरी उम्मीद थी करोली 1940 में होने वाली Olympic में देश के लिए Gold Medal जरुर लायेगा |

पर किशमत को कुछ और हि मंज़ूर था |Army camp में practice के दौरान एक hand granate करोली के हाथ में हि फट गया |उनकी ज़ान तो बच गयी पर उसका वही हाथ कट गया जिससे वो निशाना लगाते थे | उसी पल उनकी सारी उम्मीदें, सपने टूट गएँ | 

इस हादसे के बाद वो कई महीनो तक सबसे दूर गुमनामी में रहने चले गए | एक साल बाद 1939 में Hungarian National Pistol Championship में वापस आये | उसमे हिस्सा ले रहे participates ने उनसे हमदर्दी की | और बोले अच्छा है तुम खेल देखने आए हो इस्से तुम्हारा दिल भी लगा रहेगा |

पर सब हैरान रह गए जब करोली ने कहा में दर्शक नहीं बल्कि प्रतियोगी बनके आया हूँ | वो उस प्रतियोगिता में हिस्सा भी लिए और उसे जीते भी | पर इस बार उनका shooting वाला हाथ, बायाँ हाथ था |उलटे हाथ से काम करना कितना मुस्किल होता है | पर करोली ने कर दिखाया |

वो जब गुमनामी में चले गए थे वहाँ वो दुखी रहने के वजाए यही सोचे जो हो गया है वो बदल नहीं सकता | मेरा दायाँ हाथ कट चूका है उसके लिए दुखी होने से कोई फायदा नहीं | और वो पूरी मेहनत करने लगे अपने बाएं हाथ को training देने में |बहोत मुस्किल हुआ | पर लगातार कोशिस से वो इसमें सफल हो गए |

अब उनकी नज़रे 1940 में हो रही Olympic पे थी | पर यहाँ पर भी भाग्य कुछ और हि खेल, खेल रहा था | विश्व युद्ध की वजह से Olympic को रद्द कर दिया गया | पर करोली इतनी जल्दी उम्मीद छोड़ने वालों में से नहीं थे | 4 साल बाद होने वाली Olympic की तय्यारी में वो जुट गए | जब वो समय आ गया तो कुछ और हि होना लिखा था | सायद भाग्य करोली की हिम्मत और धेर्य को और भी ज्यादा परख ना चाहता था |

1944 में भी olympic को विश्व युद्ध की वजह से फिर से रद्द कर दी गयी | इस परीस्थिति में कोई भी हिम्मत हार जाता | पर करोली अलग हि मिटटी के बने थे |उनमें बहोत इच्छाशक्ति और अपनी लक्ष्य को पाने का दृढ़ सकल्प था| वो अपना पूरा ध्यान 1948 में होने वाली olympic की तय्यारी में लगा दिए|

आखिर कार वो दिन आ हि गया | 1948 के olympic में अपने से कहीं ज्यादा जवान और जोशीले प्रतियोगीयों को हरा कर अपना और अपने देश का सपने को पूरा किआ |वो ना सिर्फ Gold Medal जीतें बल्कि rapid-fire pistol shooting में world record भी बनाये |

पर कहानी यहीं पे ख़तम नहीं हुयी | वो 1952 के Olympic में भी हिस्सा लिए | और इतिहास को बदल ते हुए एक बार फिर से gold medal अपने नाम किया |

करोली Olympic में Gold Medal जीतें इसके लिए सिर्फ  जाने नहीं जाते | बलकी कैसे बार बार उम्मीदें टूटी, फिर भी सालों तक अपने सपनो को पूरा करने की जूनून को वो बनाये रखे | और लगातार मेहनत करते रहे जो आखिर कार उन्हें अपने मंजिल तक ले हि गयी | वो एक Legend के हिसाब से जाने जातें हैं जिन्होंने कभी हार नहीं मानी|उनकी काहानी हमेसा से लोगों को प्रेरणा देती रही है |

Karoly Takacs inspirational story से हमें क्या शिख मिलती है ?
कोई भी प्रेरणा दायक बात तब तक फायदा नहीं देता जब तक हम उससे कोई शिख (Lesson) अपने जीवन में ना उतारें |
इस कहानी से कुछ मुख्य बातें शिख सकते हैं |

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1) अपने हालातों को दोष देना छोड़ें

करोली के साथ जो हुआ उस हालात में ज्यादा तर लोग परीस्थिति को बुरा भला बोलते | उस बिश्फोटक बनाने वाले को, सरकार को और अपनी किश्मत को कोसते | हिम्मत हार जाते और निराशा में जीवन बिताते |
पर जो हुआ उस्से करोली बहोत दुखी हुए | वो अकेले में रोये भी होंगें | पर इस हादसे को वो accept कर लिए | और आगे दुखी होने की वजाए ये सोचे की इस परेशानी से कैसे निकला जाये | वो सोचे shooting के कला में, में तो माहिर हूँ | कैसे खड़ा होना है, कोनसा gun, shooting के लिए अच्छा है | किस तरह निशाना लगाना है | ये सब तो मुझे पता है | बस सीधे हाथ के वजाए उलटे हाथ को train करना है |

हर इंसान के साथ कुछ ना कुछ बुरा होता हि है | पर उस समय हमे ये सोचना चाहिए जो हो गया उस्से कैसे निकला जाये और हालात को कैसे बेहतर बनाया जाये |

परीस्थिति को दोष देना बहोत आसान है पर इस्से सही शिख लेकर आगे बढ़ना हि सच्ची कला है | जितना जल्दी आप ये कला सीखोगे उतना हि जल्दी आप कामयाबी की और बढोगे!

2) जो पास है उसे बेहतर बनाना

हम अपने आप को बेहतर बना सकतें हैं | जो हमारे control में नहीं उस पर गुस्सा होके, frustrate होक कोई फायदा नहीं होता | सिर्फ हमारा समय बर्बाद होगा| उदाहरण के तौर पे अगर बारिश की वजह से traffic jaam हो जाए | और उसमे हम फस जाए तो क्या कर सकते हैं ? उस वक़्त गुस्सा होके environment या खराफ रस्ते को कोसके क्या होगा ? कोई फायदा नहीं | सिर्फ हमारा गुस्से से खून जलेगा |

इसिलए जो बेहतर किआ जा सकता है उसपे ध्यान दें और उसपे अमल करें |

जितना जल्दी आप खुद पे विशवास करोगे, बेहतर जीचें सीखना, लगातार कोशिस करते रहना और जो है पास उसका सुकर गुजार रहना | इसीसे हि एक दिन बड़ी achivement मिलेगी |

3)आपका शरिर वही करता है जो आपका मन मानता है !

लक्ष्य की और जाने में कई बाधाएं आती हैं | अगर आपका मन ये सोचता है मुझसे नहीं होगा | में ये परेशानी संभाल नहीं पाउँगा | तो आपका शरिर भी कोसिस नहीं करता action लेने में |

करोली granate explosion के बाद ये सोच लेते की सब कुछ ख़तम हो गया | अब world championship जितना असम्भब है | तो वो अपने उलटे हाथ को train करने का सोचते भी नहीं |और गुमनामी की जिंदगी जीते |

पर उन्होंने इसे positive तरीके से देखा और अपना मन बनाया | तभी action ले पाए और आखिर कार जीत अपने नाम लिख गए | जब हम विशवास नहीं करते तो हमे कई बहाने मिल जातें हें काम ना करने के| पर जब हम सोचतें हें हम भी जीत सकते हें , सफल हो सकते हें | तब हि हम action लेते हें, एक एक कदम बढातें हें |

4) लक्ष्य पे डटें रहना !

कई बार आपको कामयाबी मिलते मिलते रह जाएगी | पर जो अड़े रहते हें उनसे कामयाबी ज्यादा दिन दूर रह नहीं सकती | करोली बार बार तय्यारी करते रहे, sapne देखते रहे | पर बार बार olympic प्रतियोगिता रद्द होती रही | उमर बढ़ रही थी | नए champion टक्कर देने के लिए भी तय्यार हो रहे थे | पर वो अड़े रहे अपने लक्ष्य पर | अपनी लगन पर |

जितना दृढ निश्चय होगा , और मेहनत हम उस तकलीफ को भी झेल जायेंगे जो हमे बार बार हारने पे मजबूर करती है |

5) खुदपे आत्मविश्वास

करोली private में अपने हाथ को train कर रहे थे | वो उन सब से दुरी बना लिए थे जो उन्हें समझाते ये पागलपन छोड़ दे | तुझसे नहीं होगा | अपने सपने को भूल जा | पर वो हार मानने वालों में से नहीं थे | ये विशवास हि था की वो कर पायेंगें | और वो कर गए | सबसे बड़ा गुण हममे होना चाहिए की “में कर सकता हूँ” |

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